कभी तो समझो खामोश लब.....

कभी तो समझो खामोश लब और झुकी नजरों को मेरी..
अब हर शाम तुम्हें तुमसे ही मांगे हम, ये जरूरी तो नहीं..

एक टिप्पणी भेजें

और नया पुराने