उलझे हुए हैं जुल्फ तेरे
और नज़रे कातिलाना,
क्यों देख रही हो ऐसे मुझे!
इरादा क्या है,जरा खुल के बताना।
आँखों के मधुशाला से
ज़ाम जो बना रही हो।
अब तो बहकने लगे हैं हम,
पूरी बोतल जो पिला रही हो।
नशे में हो जाए जब हम,
थोड़ी दूरी हमसे बना लेना।
राज़-ए-दिल खोल दिया गर,
मैं पागल बस तेरे लिए समझ लेना
✍️ संदीप तिवारी (ढेमन बाबू)
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मधुशाला