सबके प्रिय लौट है जाकर...

सबके प्रिय लौट है जाकर,
चकवा भी चकई को पाकर।
नदी मिली समुंद्र बीच जाकर,
सीप बीच मोती को पाकर।
मन कितना हर साए,
तुम नही आए।
राह देखती जोगन वेश बनाएं,
तुम नही आए।
बैठी दीप जलाएं,
तुम नही आए।।
   ✍️ संदीप तिवारी (ढेमान बाबू)

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