मुख्यपृष्ठगलतफहमी आज़ाद परिंदा बनने का मज़ा ही.... bySandeep Tiwari •अक्टूबर 02, 2022 0 आज़ाद परिंदा बनने का मज़ा ही कुछ और है,अपनी शर्तो पे ज़िंदगी जीने का नशा ही कुछ और है,वरना हकीकतें तो अक्सर रुला देती है,ग़लतफहमी में जीने का मज़ा कुछ और ही है।✍️ संदीप तिवारी (ढेमन बाबू)https://dhemanbabu.blogspot.com/ Tags: गलतफहमी Facebook Twitter