किस्से बनेंगे अब के बरस भी कमाल के
ये साल तो गया है कलेजा निकाल के
तुमको नया ये साल मुबारक हो दोस्तों
मैं जख़्म गिन रहा हूँ अभी पिछले साल के
माना कि ज़िन्दगी से बहुत प्यार है मगर
कब तक रखोगे काँच का बर्तन संभाल के
ऐ मेरे कारवाँ मुझे मुड़ कर ना देख तू
मैं आ रहा हूँ पाँव के काँटे निकाल के....
✍️ संदीप तिवारी (ढेमन बाबू)
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जख्म