एक इश्क था एक तू था....

एक इश्क़ था एक तू था,
ना तू मिला ना इश्क़ मिला ।
कुछ तो था दरमियां … क्या था किसे पता?

एक डोर थी खिंची खिंचीं ।
एक ओर तू एक मैं खड़ी।
मैंने कस कर थामी थी 
 वो डोर जो तूने छोड़ दी ।
छूटा बहुत कुछ मगर याद तेरी मैंने थाम ली।

धुंधली सी एक कोने में तस्वीर तेरी टांग दी।
आंखें मीच अपनी फिर एक सुकून की सांस ली।
एक इश्क़ था एक तू था।
ना तू मिला…ना इश्क़ मिला।
     ✍️ संदीप तिवारी (ढेमन बाबू)

एक टिप्पणी भेजें

और नया पुराने