चली जाती है आये दिन वो...

चली जाती है आये दिन वो बियुटी पार्लोर में यूं;
उनका मकसद है, "मिशाल-ए-हूर" हो जाना;
मगर ये बात किसी भी बेगम की समझ में क्यों नहीं आती;
कि मुमकिन नहीं 'किशमिश' का फिर से 'अंगूर' हो जाना।
✍️ संदीप तिवारी (ढेमन बाबू)

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