निहारती क्यो रह गई मुझे.....

दीठ से निहारती क्यो, रह गई मुझे
होंठ तो खुले नही, कुछ कह गई मुझे।
नैन जो मिले तो नैन को चुरा लिए
धड़कने हुई हैं तेज क्या भला किए।
लग रहा था जैसे उनको जानता हूं मैं
जन्मों जन्म का है नाता मानत हूँ मैं।
मैने की शरारतें फिर सह गई मुझे
होंठ तो खुले नही ,कुछ कह गई मुझे।
दीठ से निहारती क्यों रह गई मुझे
होंठ तो खुले नही कुछ कह गई मुझे!!
✍️ संदीप तिवारी (ढेमन बाबू)

एक टिप्पणी भेजें

और नया पुराने